Latest IVF Technologies Available in Delhi and Their Benefits in Hindi

दिल्ली में उपलब्ध नवीनतम आईवीएफ तकनीकें और उनके लाभ

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आईवीएफ उपचार को और बेहतर बनाने के लिए समय के साथ कुछ नई तकनीकों को एआरटी में जोड़ा गया है। जिससे निसंतानता का इलाज को सटीक और सुदृढ़ बनाया जा सके। बांझपन के मामलें में हमें कई अलग तरह की जटिल स्थितियों को देखने का मौका मिलता है, लेकिन बांझपन के हरेक जटिल स्थितियों के लिए आईवीएफ इलाज ही असरदार हो, यह कोई जरूरी नहीं है। बांझपन के विभिन्न मामलों में सफलता के लिए एआरटी की विभिन्न तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। अगर आप भी इनफर्टिलिटी की समस्या से जुझ रहे हैं तो आप दिल्ली के सर्वश्रेष्ठ आईवीएफ केंद्र (Best IVF Centre in Delhi) में इसका इलाज करवा सकते हैं।

इस बात में कोई शक नहीं है कि एआरटी में उपलब्ध सभी प्रजनन विकल्पों में से आईवीएफ उपचार सबसे सफल रहा है। लेकिन बावजूद इसके हमने देखा है कि ज्यादा उम्र में मां बनने की चाह रखने वाली महिलाओं को अक्सर आईवीएफ उपचार के बाद असफलता हाथ लगी है। हालांकि, ऐसा सिर्फ ज्यादा उम्र में मां बनने वाली महिलाओं के साथ ही नहीं होता है, कुछ महिलाओं को आईवीएफ के मल्टीपल चक्र के बाद भी बांझपन से जुझना पड़ता था। निसंतानता के ऐसे जटिल मामलों के लिए प्रजनन उपचार को और भी बेहतर बनाने की जरूरत थी, और साल 2024 में कई प्रजनन उपचार को अस्तित्व में लाया गया है।

नए एआरटी विकल्पों के जुड़ जाने से प्रजनन उपचार पहले से ज्यादा बेहतर, सटीक और सुदृढ हो गया है। लेकिन सवाल यह है कि “दिल्ली में उपलब्ध नवीनतम आईवीएफ तकनीकें और उनके लाभ।” एक आईवीएफ सेंटर या क्लिनिक होने के तौर पर यह आप पर निर्भर करता है कि आप अपने क्षेत्र को लेकर कितना जागरूक हैं, दिल्ली के सर्वश्रेष्ठ आईवीएफ केंद्र (Best IVF Centre in Delhi) के तौर पर नए तकनीकों और नए उपकरणों के बारे में जानना और उनको अपने सेंटर का हिस्सा बनाना आपकी जिम्मेदारी होती है। नए तकनीकों और उपकरणों को अपने सेंटर का हिस्सा बनाना सिर्फ एक इंवेस्टमेंट नहीं है, बल्कि उपचार में सफलता पाने और अपनी सेंटर का सफलता दर बढ़ाने का एक जरीया है।

आईए जानते हैं “दिल्ली में उपलब्ध नवीनतम आईवीएफ तकनीकें और उनके लाभ” के बारे में।

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आईवीएफ में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल (Use of Artificial Intelligence in IVF) – पिछले एक साल में हम सभी ने एआई शब्द के बारे में बहुत कुछ सुना है, और जो भी सुना अच्छा ही सुना है। लेकिन आप में से कई लोग यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि आईवीएफ उपचार में भी एआई मददगार साबित हो सकता है। एआई के मदद से भ्रूणविज्ञानी के लिए सही पोषित अंडे और शुक्राणु का चुनाव आसान हो जाता है, जिससे लैब में सही भ्रूण को तैयार किया जा सकता है, और इसी भ्रूण के मदद से गर्भधारण मुमकिन होगा।

टाइम-लैप्स भ्रूण निगरानी(Time-lapse Fetal Monitoring) – टाइम-लैप्स भ्रूण निगरानी का मतलब होता है कि छोटे से समय में आप भ्रूण को लेकर सभी तरह की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। लैब में भ्रूण को तैयार करने से लेकर भ्रूण के स्थानांतरण के बाद तक की रिजल्ट को जाना जा सकता है, और इस तरह से एक भ्रूणविज्ञानी होने के तौर पर आपके लिए सही भ्रूण को चुनने में मददगार साबित होता है। टाइम-लैप्स भ्रूण निगरानी में इनक्यूबेटर के अंदर सूक्ष्म कैमरों का उपयोग करके भ्रूण विकास की निरंतर निगरानी कर सकते हैं। टाइम-लैप्स भ्रूण निगरानी की मदद से आप जान सकते हैं कि भ्रूण किस तरह का व्यवहार करने वाला है।

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प्रीइम्प्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग (PGT) – लगभग सभी तरह के रोग में अनुवांशिक(जेनेटिक) का अहम किरदार होता है, और बांझपन की समस्या भी उन्हीं में से एक है। ऐसे में पहले जब लोग इलाज करवाते थे तो उन्हें असफलता मिलती थी, लेकिन कई बार असफलता का कारण नहीं पता चलता था। ऐसी परिस्थिति के लिए ही प्रीइम्प्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग को एआरटी का हिस्सा बनाया गया। लैब में तैयार किया गया भ्रूण को गर्भाश्य में स्थानांतरित करने से पहले पीजीटी की मदद से पता लगाया जाता है कि भ्रूण पर अनुवांशिक असर है या नहीं। इस तरह से सही भ्रूण को चुनना आसान हो जाता है।

लेजर अस्सिटेड हैचिंग(Laser Assisted Hatching) – एआरटी में नए जोड़े गए प्रजनन उपचार में से एक है लेजर अस्सिटेड हैचिंग उपचार तकनीक। कई बार आईवीएफ के मल्टीपल चक्र के बाद भी महिला गर्भधारण करने में असफल रहती है, असफलता का कारण स्थानांतरित किए गए भ्रूण का गर्भाशय की दीवार से प्रत्यारोपित न होना पाया जाता है। ऐसी स्थिति के लिए लेजर अस्सिटेड हैचिंग का इस्तेमाल किया जाता है।

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लेजर अस्सिटेड हैचिंग का इस्तेमाल करके भ्रूण के सेल यानी जोना को पतला किया जाता है, जिससे भ्रूण गर्भाशय की दीवार से प्रत्यारोपित हो जाए और गर्भधारण संभव हो सके। ऐसा करने से इम्प्लांटेशन और प्रेग्नेंसी दर बढ़ जाता है, और एलएएच का इस्तेमाल आईवीएफ के मल्टीपल असफल मामलों या फिर उन महिलाओं के केस में इस्तेमाल होता जो 37 की उम्र में मातृत्व को प्राप्त करना चाहती हैं। हम सभी जानते हैं कि जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है प्रजनन क्षमता प्रभावित होने लगती है और 37 की उम्र में मां बनना चुनौतीपूर्ण होता है।

क्रायोप्रिजर्वेशन प्रक्रिया(Cryopreservation Process) – एक कपल के तौर पर आप चाहतें है कि आप पूरी तरह से स्टेबल हो जाएं और फिर परिवार शुरू करें, लेकिन कोई नहीं जानता है कि इसका कितना समय लगेगा। ऐसे में एक कपल के तौर पर आपके पास विकल्प होता है क्रायोप्रिजर्वेशन प्रक्रिया का इस्तेमाल करके आप अपने भ्रूण को फ्रीज और संग्रहीत कर सकते हैं। जिससे आने वाले समय में जब आप परिवार के बारे में सोचते हैं तो आप अपने भ्रूण का इस्तेमाल करके संतानप्राप्ती कर सकते हैं, और इस तरह से आप अपने बच्चे के जैविक पैरेंट्स बन जाते हैं।

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स्टेम सेल उपचार(Stem Cell Treatment) – आमतौर पर इस उपचार विकल्प का इस्तेमाल शरीर के किसी अंग के क्षतिग्रस्त उत्तकों को फिर से निर्माण करने के लिए किया जाता है। आपने पाया होगा कि कई बार सबकुछ सही रहने के बावजूद आप प्राकृतिक रूप से गर्भधारण करने में नाकाम रही हैं। जब आप टेस्ट करवाती हैं तो पता चलता है अंडाशय के उत्तक क्षतिग्रस्त हो गए हैं, जिसकी वजह से गर्भधारण समस्यात्मक हो गया है। ऐसी परिस्थिति में आप स्टेम सेल उपचार की मदद ले सकते हैं, स्टेम सेल अंडाशय के क्षतिग्रस्त उत्तकों को भी ठीक कर सकता है और गर्भधारण मुमकिन होगा।

ओवेरियन कायाकल्प(Ovarian Rejuvenation) – ओवेरियन कायाकल्प प्रजनन उपचार तकनीक का नया सदस्य है और इस उभरती हुई तकनीक आईवीएफ उपचार की सफलता बढ़ाने में अहम किरदार निभा सकता है। इस तकनीक की मदद से ओवेरि के द्वारा किए जाने वाले कार्य को बेहतर करना और प्रजनन परिणामों में सुधार करना है। इस तकनीक का इस्तेमाल ज्यादातर उन महिलाओं पर किया जाता है, जिनका ओवेरियन रिजर्व कम होता है।

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निष्कर्ष (Conclusion)

समय आगे बढ़ते रहना ही तरक्की के बारे में बताता है, और आईवीएफ के मामले में भी ऐसा ही कुछ लागू होता है। बांझपन के उपचार के तौर पर आईवीएफ का इजात किया गया, लेकिन इसके बावजूद कुछ जटिल मामलों में आईवीएफ उपचार भी असफल साबित हो जाता था। ऐसे में निंसतानता का उपचार करने के लिए कुछ नए प्रजनन उपचार विकल्पों को जोड़ा गया। जिससे निसंनाता का इलाज पहले से ज्यादा बेहतर, सटीक और सुदृढ़ हो सके। इन तकनीकों की मदद से निसंतानता के सभी मामलों में असरदार होगा और सही रिजल्ट प्रदान करेगा। अगर आप भी बांझपन की समस्या का इलाज कराना चाहते हैं तो दिल्ली में आईवीएफ लागत(IVF cost in Delhi) आपके लिए उचित रहेगा।

पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs) 

प्र.1. मैं आईवीएफ के साथ अपनी सफलता की संभावना कैसे बढ़ा सकता हूं??

उत्तर- इसके लिए आपको कुछ कारकों पर काम करना होगा। जैसे – पौष्टीक आहार का सेवन, कैफीन का सेवन सीमित करें, वजन नियंत्रण और नियमित व्यायाम के साथ में धूम्रपान और शराब के सेवन से बचें।

प्र.2. पहले प्रयास में आईवीएफ की सफलता दर क्या है?

उत्तर- 35 वर्ष से कम आयु की महिलाओं को सबसे अधिक सफलता मिलती है, लेकिन 35 से 37 वर्ष की आयु के बीच भी सफलता की दर 40.5% है। 38 से 40 वर्ष की आयु वाली महिलाओं की सफलता दर कम 26% है।

प्र.3. ज्यादातर आईवीएफ कब फेल होते हैं?

उत्तर- आईवीएफ के फेल होने का मतलब है कि जब भ्रूण को गर्भाशय में स्थानांतरित किया जाता है  ताकी भ्रूण अपने जोना(सेल) से बाहर निकलकर गर्भाशय के दीवार में प्रत्यारोपित हो जाए लेकिन ऐसा न होने पर आईवीएफ फेल हो जाता है।    

प्र.4. आईवीएफ गर्भावस्था के लक्षण कब शुरू होते हैं?

उत्तर – आमतौर पर, आपको गर्भावस्था से जुड़े लक्षण को पूरी तरह से सामने आने में 1 से 4 सप्ताह का समय लगता है। लेकिन कुछ लक्षण आपको पहले दो सप्ताह के दौरान देखने के लिए मिला जाएगा।  

प्र.5. आईवीएफ में नवीनतम तकनीक क्या है?

उत्तर – आईवीएफ में कई नए तकनीकों को जोड़ा गया है, जिससे आईवीएफ उपचार ज्यादा बेहतर और ज्यादा सुदृढ़ हो जाए। नवीनतम तकनीक – आईवीएफ में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल, टाइम-लैप्स भ्रूण निगरानी, प्रीइम्प्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग, लेजर अस्सिटेड हैचिंग, क्रायोप्रिजर्वेशन प्रक्रिया, स्टेम सेल उपचार और ओवेरियन कायाकल्प।

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